राजा कृष्ण मेनन (Raja Krishna Menon) द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘पिप्पा’ (Pippa) शायद पहली ऐसी हिंदी फ़िल्म है जो किसी युद्ध उपकरण को लेकर बनी हो। कई फ़िल्मों में विमानों से लेकर जहाज़ों का ज़िक्र तो आता है लेकिन लड़ाई में इस्तेमाल होने वाली किसी चीज़ पर फ़िल्म बनाना एक जोखिम ही होता है। यह फ़िल्म बलराम सिंह मेहता की किताब ‘द बर्निंग चैफ़ीज़’ पर आधारित है। फ़िल्म की अच्छी बात यह लगी कि इसमें टैंक ‘पिप्पा’ को लेकर किसी तरह का गैरज़रूरी हो-हल्ला नहीं है। यह फ़िल्म अंडरटोन में चलती रहती है और आखिर तक अपनी लय को बरक़रार रखती है। हालाँकि फ़िल्म देखते हुए यह भी लगा कि कहीं-कहीं इसे थोड़ा इंटेंस होना चाहिए था।
जहाँ कई फ़िल्में अपने भारी-भरकम बजट के बावजूद कंटेंट के मामले में फुस्स साबित हो जाती हैं, यह फ़िल्म सिर्फ़ 20 करोड़ के बजट में बनी है लेकिन कहानी और फ़िल्मांकन के स्तर पर हमें काफ़ी कुछ दिखाती है। इन दिनों हॉलीवुड जैसा वीएफ़एक्स इस्तेमाल करने की होड़ मची हुई है। इस चक्कर में हमारे यहाँ की कई बड़े बजट की फ़िल्में विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के बीच फँसी हुई कहानी जैसी हो जाती हैं। ऐसे में इफ़ेक्ट्स का इस्तेमाल बहुत कम करते हुए इस फ़िल्म में ज़्यादातर दृश्य ओरिजिनल ही फ़िल्माए गए हैं। युद्ध में इस्तेमाल किए गए असली टैंकों का फ़िल्मांकन बेहतरीन तरीके से किया गया है जिन्हें देखकर लगता है कि यह फ़िल्म बड़े परदे के लिए ही थी। रहमान का संगीत बढ़िया ही है, लेकिन कहीं-कहीं थोड़ा मिसफ़िट-सा लगा। पीरियड फ़िल्मों में वे इतना बेहतरीन संगीत दे चुके हैं कि उनसे उम्मीदें ज़्यादा ही होती हैं। ईशान खट्टर, सोनी राजदान, मृणाल ठाकुर, प्रियांशु समेत सभी कलाकारों ने बहुत सहज अभिनय किया है। सूर्यांश की भूमिका छोटी है लेकिन उनकी मौजूदगी पूरी फ़िल्म में बनी रहती है।
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