किलर्स ऑफ़ द फ़्लॉवर मून (Killers of the Flower Moon) : स्कॉर्सेसी की एक और उम्दा फ़िल्म

मार्टिन स्कॉर्सेसी (Martin Scorsese) हॉलीवुड के जाने-माने निर्देशक हैं। उन्होंने 1967 से लेकर अब तक बीस से ज़्यादा फ़िल्मों का निर्देशन किया जिनमें से ज़्यादातर बेहद चर्चित रहीं और हॉलीवुड की महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में गिनी जाती हैं। वर्ष 2010 में आई ‘शटर आइलैंड’ के साथ उन्होंने अपनी फ़िल्मों के निर्माण का दायित्व भी संभाला। इसी साल आई उनकी फ़िल्म ‘किलर्स ऑफ़ द फ़्लॉवर मून’ (Killers of the Flower Moon) कुल साढ़े तीन घंटे की है जो हॉलीवुड फ़िल्मों के लिहाज़ से बहुत लंबी है लेकिन अपने अच्छे कथानक के कारण किसी भी जगह झोल खाती नज़र नहीं आती। यह फ़िल्म 2017 में आए डेविड ग्रैन के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। रॉबर्ट डी नीरो और लियोनार्दो डिकैप्रियो ने 1993 में आई फ़िल्म ‘दिस बॉयज़ लाइफ़’ में एक साथ काम किया था। तीस साल बाद वे एक बार फिर किसी फ़िल्म में साथ नज़र आए हैं। इन दोनों अभिनेताओं के साथ मार्टिन स्कॉर्सेसी करीब डेढ़ दर्जन फ़िल्में बना चुके हैं। ‘द रेवेनेंट’ में लियोनार्दो के अभिनय को उनका अब तक का बेहतरीन काम कहा जाता है लेकिन ‘किलर्स ऑफ़ द फ़्लॉवर मून’ में भी उन्होंने सेना से लौटे एक ऐसे युवा की भूमिका को बखूबी निभाया है जिसके व्यक्तित्व में कई परतें हैं। दूसरी ओर रॉबर्ट डी नीरो जैसे दिग्गज अभिनेता को बड़े परदे पर देखना एक अलग तरह का रोमांच पैदा करता है।

फ़िल्म में 1920 के आसपास का समय दिखाया गया है। अमेरिका में वहाँ के मूल निवासियों का अपना लम्बा इतिहास रहा है। कई अन्य जनजातियों की तरह ‘ओसेज’ भी वहाँ की एक प्रमुख जनजाति रही। ज़मीनों को लेकर हुए कई संघर्षों के बाद अंततः ओसेज ने ओक्लाहोमा में ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा ख़रीदा और वहीं बस गए। अमेरिकी सरकार से हुए समझौते के अनुसार वहाँ की खनिज संपदा पर भी उन्हीं का अधिकार था। अपनी इस नई ज़मीन पर उन्हें तेल के विशाल भंडार मिले जिससे धीरे-धीरे ये लोग काफ़ी अमीर बन गए। इसी दौरान एक बिल पारित हुआ जिसके अनुसार उन्हें अब अपना ही पैसा खर्च करने के लिए किसी गोरे संरक्षक की अनुमति की ज़रूरत पड़ने लगी।

जन-जातियों के रीति-रिवाज, मान्यताएँ प्रकृति से गहरे तक जुड़ी होती हैं। ओसेज ‘वाकोंटा’ को अपना ईश्वर मानते हैं। सूरज, चंद्रमा और तारों को लेकर उनकी मान्यताएँ बिल्कुल अलग हैं। फ़िल्म के शुरुआती दृश्य में ओसेज समुदाय के कुछ बुज़ुर्ग अपने वंशजों के श्वेत अमेरिकी समाज में शामिल होने का शोक मनाते हुए एक पाइप को ज़मीन में दफ़नाते हैं। अगले दृश्य में हम देखते हैं कि अपनी ज़मीन में तेल के रूप में सम्पन्नता का सोता फूट पड़ने की ख़ुशी में ओसेज लोग झूम रहे हैं। यह प्रथम विश्व युद्ध का समय है। अर्नेस्ट बर्कहार्ट (लियोनार्दो डिकैप्रियो) युद्ध से अपने चाचा विलियम किंग हेल (रॉबर्ट डी नीरो) के पास लौटता है। उसका भाई बायरन भी हेल के साथ उनके बड़े से फ़ार्म में रहता है। अर्नेस्ट को उसके चाचा टैक्सी चलाने का काम देते हैं। इस तरह उसकी मुलाकात मॉली से होती है। श्वेत अमेरिकी अक्सर पैसे वाले ओसेज लोगों को लूटते रहते हैं। अर्नेस्ट और उसका भाई बायरन भी अक्सर नकाब पहनकर ऐसे कामों को अंजाम देते हैं। अर्नेस्ट और मोली में दोस्ती बढ़ती जाती है और जल्द ही दोनों शादी कर लेते हैं। कुछ समय बाद उनके बच्चे भी होते हैं। इस बीच ओसेज समुदाय के लोगों की हत्याओं का सिलसिला जारी रहता है। इस सब में ओसेज समुदाय को स्थानीय प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिल पाता। हेल को “किंग” के नाम से भी जाना जाता है। वह खुद को ओसेज लोगों का दोस्त बताता है, उनकी भाषा में बात करना भी जानता है, उन्हें जब-तब उपहार भी देता रहता है, उनके समारोहों में उसे सम्मान के साथ बुलाया जाता है। लेकिन उसके असल इरादे कुछ और ही हैं। धीरे-धीरे ओसेज हत्याओं का सिलसिला मॉली के परिवार तक पहुँच जाता है। उसकी दो बहनों की हत्या हो जाती है। अर्नेस्ट खुद भी नहीं समझ पाता कि वह असल में हेल की योजना का एक हिस्सा भर है। बाद में बात अमेरिकी सरकार तक पहुँचती है, ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन इस सारे मामले में दखल देता है और परतें खुलने लगती हैं। लेकिन यहाँ फ़िल्म किसी तरह की मर्डर मिस्ट्री न होकर हमें उस डर से रूबरू करवाती है जो किसी समय ओसेज लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया था। इस फ़िल्म में हमें अर्नेस्ट के किरदार के अलग-अलग पहलू दिखाई देते हैं।

अमेरिकी मूल निवासियों की भाषा में ‘फ़्लॉवर मून’ का अर्थ है, मई महीने में आने वाली पूर्णिमा का चाँद! जिस समय वहाँ फूल खिलते हैं। फ़िल्म हमें दिखाती है कि किस तरह धन की लालसा इन फूलों को रौंदकर वहाँ डर के बीज बो देती है। लियोनार्दो की पत्नी की भूमिका में लिली ग्लैडस्टोन (Lily Gladstone) ने फ़िल्म में सशक्त अभिनय किया है। उनकी आँखों का सूनापन एक ओसेज महिला के रूप में उनके किरदार को और प्रभावशाली बनाता है। स्कॉर्सेसी ‘टैक्सी ड्राइवर’ समेत अपनी कई फ़िल्मों में कैमियो कर चुके हैं। इस फ़िल्म में भी वे कुछ ही देर के लिए आते हैं लेकिन अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं। फ़िल्म में ब्रैंडन फ़्रेज़र की छोटी-सी लेकिन अहम भूमिका है जिन्हें पिछले वर्ष ‘द व्हेल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर पुरस्कार मिला था।

फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी रॉड्रिगो प्रिएतो ने की है जिन्होंने हाल ही में इस साल की चर्चित फ़िल्म ‘बार्बी’ में भी सिनेमैटोग्राफ़ी की थी। ‘ब्रोकबैक माउंटेन’ और ‘आयरिशमैन’ जैसी फ़िल्मों में भी रॉड्रिगो के काम को काफ़ी सराहा गया। ये फ़िल्में श्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफ़ी की श्रेणी में ऑस्कर तथा बाफ़्टा में नॉमिनेट भी हुईं। इस फ़िल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जो किसी भी फ़िल्म को बड़े फलक का सिनेमा बनाते हैं। रॉड्रिगो ने एक इंटरव्यू में बताया कि इस फ़िल्म के ज़्यादातर दृश्य बाहर फ़िल्माए जाने थे, इस कारण से दिन और रात के दृश्यों में सही रोशनी का ध्यान रखना ज़्यादा चुनौतीपूर्ण था। फ़िल्म का संगीत रॉबी रॉबर्टसन ने दिया है जो इस कहानी के खौफ़ और पीड़ा को और गहराई से महसूस करवाता है। स्कॉर्सेसी की कई फ़िल्मों में रॉबी पहले भी संगीत दे चुके हैं। दुर्भाग्य से इस फ़िल्म की रिलीज़ के कुछ ही समय पहले उनका निधन हो गया। स्कॉर्सेसी ने यह फ़िल्म रॉबी को ही समर्पित की है। फ़िल्म की पटकथा एरिक रॉथ और मार्टिन स्कॉर्सेसी ने मिलकर लिखी है। एरिक इससे पहले ‘फ़ॉरेस्ट गम्प’, ‘द क्यूरियस केस ऑफ़ बेंजमिन बटन’, ‘द इनसाइडर’ और ‘ड्यून’ जैसी महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों की पटकथा लिख चुके हैं।

इस वर्ष के कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में यह फ़िल्म खासी चर्चा में रही। लिली ग्लैडस्टोन को इस साल के Golden Globe Awards में इस फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। ‘किलर्स ऑफ़ द फ़्लॉवर मून’ इस साल की बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है जिसे देखना हर सिनेमा प्रेमी के लिए एक यादगार अनुभव है।

 

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