सब कुछ समेटने की कोशिश में लड़खड़ा गई ‘नेपोलियन’ (Napoleon) : अमेय कान्त

रिडली स्कॉट (Ridley Scott) जैसा निर्देशक हो और वॉकिन फ़ीनिक्स (Joaquin Phoenix) जैसा अभिनेता हो तो उम्मीदें बढ़ ही जाती हैं. विषय भी ऐसा था कि उत्सुकता स्वाभाविक थी. इतिहास पर आधारित किसी भी फ़िल्म में हर घटना और हर पक्ष को समेटना बहुत मुश्किल होता है. ‘नेपोलियन’ (Napoleon) कुछ हद तक तो इसमें कामयाब होती है लेकिन ज़्यादातर हिस्सों में लड़खड़ाती हुई दिखाई देती है. नेपोलियन इतिहास का ऐसा किरदार है जो अपने पोर्ट्रेयल में बहुत गहराई की माँग करता है. यह फ़िल्म नेपोलियन के राजनैतिक और निजी जीवन, दोनों के बारे में है. इतिहास आधारित फ़िल्म से बहुत रोमांचक होने की उम्मीद नहीं की जा सकती लेकिन यह फ़िल्म काफ़ी सपाट ढंग से सामने से गुज़र जाती है.

फ़्रांस की राज्य क्रांति के दौरान वहाँ के राज परिवार के सदस्यों को सरेआम मृत्युदंड दिए गए थे. फ़िल्म की शुरुआत इसी घटना से होती है और यह दृश्य झकझोरता है. फ़िल्म में लड़ाई के दृश्यों पर भी मेहनत की गई है. रूस के साथ बर्फ़ीली ज़मीन पर हुए युद्ध के दृश्यों का फिल्मांकन बेहतरीन है. फ़िल्म में कहीं भी नकलीपन नज़र नहीं आता. तोप के गोलों से इंसानों, घोड़ों का हताहत होना वास्तविक लगता है. ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख भी सिलसिलेवार ढंग से आता है. लेकिन फ़िल्म की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि फ़िल्म दर्शक को नेपोलियन से जुड़ पाने का मौका ही नहीं देती. उसकी मौत भी फ़िल्म में बस एक घटना की तरह आती है. जबकि कई फ़िल्मों में नायकों के हर अच्छे-बुरे काम के बावजूद उसकी मौत गहरा असर छोड़ती है जैसे ‘गॉड फ़ादर’ में डॉन कॉर्लियोन. वॉकिन जिस स्तर के अभिनेता हैं इसका परिचय वे ‘जोकर’ में दे चुके हैं. ‘ग्लैडिएटर’ में भी उनकी भूमिका बहुत प्रभावशाली थी. उनका अभिनय यहाँ भी अच्छा है लेकिन ज़्यादातर समय उनके चेहरे पर एक ही तरह का भाव दिखाई देता रहा. नेपोलियन की पत्नी जोसेफ़ीन की भूमिका में वैनेसा ने उम्दा अभिनय किया है. जोसेफ़ीन से नेपोलियन का रिश्ता बहुत गहरा बताया गया है लेकिन उसके किरदार की परतों को खोलने की कोशिश नहीं की गई.

साल 1927 में जब मूक फिल्मों का दौर था, निर्देशक एबेल ग्लांस ने ‘नेपोलियन’ पर एक मूक फ़िल्म बनाई थी जो काफ़ी चर्चित भी हुई. यह फ़िल्म पाँच घंटे की थी और एबेल इसके आगे पाँच भाग और बनाना चाहते थे. उनके हिसाब से नेपोलियन के जीवन को समेटने के लिए इतना कुछ बताना ज़रूरी था. नेपोलियन पर और भी फ़िल्में बनी हैं. मार्लन ब्रांडो द्वारा अभिनीत ‘डेज़िरी’ नेपोलियन के प्रेम जीवन पर केन्द्रित थी. इसी तरह नेपोलियन पर एक फ़िल्म और है जो सिर्फ़ वाटरलू की लड़ाई पर केन्द्रित है. इस तरह के विषयों में थोड़े विस्तार की दरकार होती है. ‘नेपोलियन’ देखते हुए भी यही लगा कि अगर पूरी कहानी ही दिखानी थी तो शायद कोई वेब सीरीज़ इसे ज़्यादा बेहतर ढंग से दिखा पाती. साल 2002 में नेपोलियन पर चार एपिसोड की एक मिनीसीरीज़ बन भी चुकी है जिसकी कुल लम्बाई छह घंटे की थी. ऐतिहासिक विषयों पर ‘स्पार्टाकस’ और ‘रोम’ जैसी सीरीज़ भी काफ़ी चर्चित रहीं. यह भी बताया जा रहा है कि ‘नेपोलियन’ की मूल लम्बाई चार घंटे की है जो थिएटर के हिसाब से कम करके लगभग पौने तीन घंटे की कर दी गई है.

जब कोई फ़िल्मकार इतिहास पर आधारित फ़िल्म बनाता है तो थोड़ा-बहुत बदलाव करता ही है. लेकिन इस फ़िल्म में इतिहास के कई तथ्यों में फेर-बदल किया गया है. नेपोलियन का खुद लड़ाइयाँ लड़ना, मिस्र के पिरामिडों पर हमला करना, बर्फ़ की झील में रूसी सैनिकों का डूबकर मरना; फ़िल्म में ऐसे कई प्रसंग आते हैं जिन पर इतिहासकारों को आपत्ति है. फ़िल्म का संगीत और सिनेमैटोग्राफ़ी अच्छी है. बस जो कमियाँ रह गईं वे सभी अच्छे पक्षों पर भारी पड़ जाती हैं.

 

000

Share

2 Replies to “सब कुछ समेटने की कोशिश में लड़खड़ा गई ‘नेपोलियन’ (Napoleon) : अमेय कान्त

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *