Christopher Nolan Filmography Part Two
‘द डार्क नाइट’ के कई हिस्सों को आईमैक्स कैमरे से फ़िल्माया गया था. इस कैमरे का रिसॉल्यूशन सामान्य 35-एमएम कैमरे की अपेक्षा तीन गुना अधिक होता है. परिणामस्वरूप, दृश्य की गुणवत्ता काफ़ी बढ़ जाती है. बताया जाता है कि उस समय हॉलीवुड में सिर्फ़ चार आईमैक्स कैमरे प्रयोग में लाए जा रहे थे. इस फ़िल्म को दो ऑस्कर मिले, एक श्रेष्ठ साउंड एडिटिंग के लिए हैंस ज़िमर को और दूसरा श्रेष्ठ सहायक भूमिका के लिए हीथ लेजर को. हीथ लेजर ने इस फ़िल्म में जोकर की भूमिका को अविस्मरणीय बना दिया, लेकिन यह बहुत बड़ी विडम्बना रही कि फ़िल्म की रिलीज़ के कुछ ही समय पहले, जब फ़िल्म की एडिटिंग चल रही थी, दवाओं की गलत खुराक के कारण हीथ का देहांत हो गया. उन्हें फ़िल्म में इस भूमिका के लिए ऑस्कर के अलावा गोल्डन ग्लोब, बाफ्टा सहित और भी कई पुरस्कार मिले. ‘द डार्क नाइट’ के बारे में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने लिखा, “यह फ़िल्म उस जगह पर खड़ी है जहाँ कला और उद्योग, कविता और मनोरंजन के बीच फ़र्क शुरू होता है. इस श्रेणी में आने वाली किसी भी हॉलीवुड फ़िल्म की तुलना में यह कहीं ज़्यादा गहराई तक पैठ बनाती है.” कुछ फ़िल्मकारों ने तो इसे कॉमिक बुक फ़िल्मों की ‘गॉडफ़ादर’ भी कहा.
बैटमैन सीरीज़ के बीच में ही नोलन ने ‘द प्रेस्टीज’ (2006) को निर्देशित किया. यह फ़िल्म क्रिस्टोफ़र प्रीस्ट के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित थी. दो जादूगरों की आपसी प्रतिस्पर्धा पर आधारित इस फ़िल्म को दर्शकों का ज़बरदस्त प्रतिसाद मिला. एक बार फिर यह फ़िल्म भी अपनी अलहदा शैली के लिए दुनिया-भर में दर्शकों का ध्यान खींचने में सफ़ल रही. बॉलीवुड में बनी ‘गुज़ारिश’ (निर्देशक – संजय लीला भंसाली) और ‘धूम-3’ (निर्देशक – वी.के आचार्य) के कुछ दृश्यों और कथावस्तु पर इस फ़िल्म का अच्छा-खासा असर देखा जा सकता है. ‘ममेन्टो’ की ही तरह इस फ़िल्म को भी नोलन ने एकरेखीय नहीं बनाते हुए उसी तरह से बुना जैसे कोई जादूगर अपने सामने बैठे दर्शकों के लिए भ्रम का जाल बुनता है. यहाँ प्रतिस्पर्धा जादूगरों के बीच तो है ही, टेस्ला और एडिसन जैसे वैज्ञानिकों के बीच भी है. फ़िल्म में एक संवाद है कि जादू लोगों को कुछ देर के लिए उनकी उबाऊ ज़िंदगियों और दुःख-दर्द से छुटकारा दिलाकर उन्हें किसी ज़्यादा बड़ी और पारलौकिक चीज़ में यकीन करने का मौका देता है. नोलन भी अपनी इस फ़िल्म में दर्शकों के साथ यही करते हैं. वे उलझाते हैं, चौंकाते हैं और इस दौरान बड़ी सफ़ाई से हमसे झूठ भी बोलते रहते हैं.
‘द डार्क नाइट’ और ‘द प्रेस्टीज’ की सफलता के बाद 2010 में नोलन वार्नर ब्रदर्स के साथ ‘इन्सेप्शन’ लेकर आए. इस फ़िल्म में लियोनार्डो डी कैप्रियो मुख्य भूमिका में थे. इस फ़िल्म को लिखा भी नोलन ने ही था. कहा जाता है कि नोलन ने इस फ़िल्म की पटकथा पर दस साल तक काम किया. इस फ़िल्म की मूल अवधारणा थी, किसी का विचार चुराने या उसके दिमाग में कोई विचार रोपने के लिए उसके स्वप्न में प्रवेश करना! इस फ़िल्म में सपनों के भीतर कई तरह की भूल-भुलैयाएँ और उलझन-भरी असंभव संरचनाएँ बनाई जाती हैं. नोलन ने खुद यह कई बार कहा भी कि ग्राफ़िक आर्टिस्ट एम.सी. एशर द्वारा बनाई गई इस तरह की कई संरचनाओं की डिज़ाइनों का उन पर काफ़ी प्रभाव रहा. अपनी नॉन-लीनियर टाइमलाइन शैली को उन्होंने ग्रैहम स्विफ़्ट के उपन्यास ‘वाटरलैंड’ से प्रभावित बताया, और यही शैली आगे चलकर नोलन की पहचान भी बन गई. ‘इन्सेप्शन’ में मुख्य पात्र को स्वप्न की भीतर प्रवेश करने की तकनीक मालूम होती है और वह अपनी टीम के साथ लोगों के सपनों में प्रवेश करता है. इस तकनीक का ज़्यादातर उपयोग किसी व्यावसायिक प्रतिस्पर्धी को नुकसान पहुँचाने के लिए ही किया जाता है. कई बार स्वप्न के भीतर स्वप्न की इतनी परतें होती हैं कि पात्रों के साथ दर्शक खुद भी उलझकर रह जाता है. इस तरह की फ़िल्मों में निर्देशक के पास वैज्ञानिक समझ का होना बहुत ज़रूरी है. दर्शक फ़िल्म के साथ बंधकर तभी रह पाता है जब आप उसे एक फ़ॉर्मूला देते हैं और अंत तक उस फ़ॉर्मूले का निर्वाह भी करते हैं. यहाँ एक बार फिर समय के प्रति नोलन की सजगता दिखाई देती है जब वे वास्तविक समय और सपनों के भीतर के समय के बीच सम्बन्ध बनाते हुए उन्हें अलग-अलग पैमाने पर दिखाते हैं. फ़िल्म आलोचक मार्क कार्मोड ने इसके बारे में लिखा, “यह फ़िल्म इस बात का प्रमाण है कि लोग मूर्ख नहीं होते, सिनेमा बकवास नहीं होता, और ब्लॉकबस्टर फ़िल्में कलात्मक भी हो सकती हैं.” इस फ़िल्म को कई पुरस्कारों के साथ श्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफ़ी, श्रेष्ठ साउंड एडिटिंग, श्रेष्ठ साउंड मिक्सिंग और श्रेष्ठ विज़ुअल इफेक्ट्स के लिए चार ऑस्कर अवार्ड भी मिले.
नोलन ने निर्देशन के अलावा ‘मैन ऑफ़ स्टील’ (2013) और ‘ट्रांसेंडेंस’ (2014) जैसी फ़िल्मों में निर्माता की भूमिका भी अदा की. 2014 में नोलन ने अपने भाई जोनाथन नोलन के साथ मिलकर ‘इंटरस्टेलर’ की पटकथा पर काम किया. इससे पहले भी जोनाथन ने क्रिस्टोफ़र की कई फ़िल्मों की पटकथा लिखने में उनका सहयोग किया था. इस फ़िल्म को पहले स्टीवन स्पिलबर्ग निर्देशित करने वाले थे. वे नोबल पुरस्कार प्राप्त भौतिकशास्त्री किप थोर्न की इस अवधारणा से बहुत प्रभावित थे कि ब्लैकहोल की तरह वर्महोल का भी अस्तित्व होता है और इन्हें एक से दूसरी गैलेक्सी में पहुँचने के लिए ‘शॉर्टकट’ की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है. किप थोर्न इस फ़िल्म के सलाहकार होने के साथ इसके सह-निर्माता भी थे. इसकी पटकथा के लिए स्पिलबर्ग ने जोनाथन नोलन को चुना लेकिन बाद में चलकर उनकी कंपनी ड्रीमवर्क्स के पैरामाउंट से अलग हो जाने के कारण इस फ़िल्म के निर्देशन की बागडोर क्रिस्टोफ़र के हाथ में आ गई. उन्होंने इस फ़िल्म के स्पिलबर्ग वाले संस्करण में काफ़ी बदलाव किए. फ़िल्म के केंद्र में मूल विचार यह था कि भविष्य में किसी समय पृथ्वी रहने लायक नहीं रह गई है और मानवजाति को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए पृथ्वी से इतर किसी अन्य ग्रह पर रहने की सम्भावना तलाशनी होगी. चूँकि सौर-मंडल में किसी ग्रह पर जीवन नहीं है, कुछ अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की टीम वर्महोल का उपयोग करके कई प्रकाश वर्ष दूर स्थित किसी गैलेक्सी में एक ब्लैक होल ‘गार्गेंचुआ’ के चक्कर लगा रहे ग्रहों पर जीवन की संभावनों को खोजने के लिए निकलती है. यहाँ नोलन को फ़िल्म में अलग से टाइमलाइन रचने की ज़रूरत नहीं पड़ी. आइन्स्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत और खगोल भौतिकी ने ही फ़िल्म में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर दीं कि वर्तमान और भूतकाल एक-दूसरे के आमने-सामने आकर खड़े हो गए. फ़िल्म में ‘टेसरैक्ट’ जैसी जटिल संरचनाओं की अवधारणा का प्रयोग भी है. निश्चय ही स्पिलबर्ग ने भी यह फ़िल्म बेहद कमाल की बनाई होती क्योंकि साइंस फिक्शन फ़िल्मों में उन्हें काफ़ी महारत हासिल है, लेकिन नोलन ने भी इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया और फ़िल्म के तकनीकी और भावनात्मक पक्ष के बीच संतुलन बनाए रखा. इस फ़िल्म को इसके श्रेष्ठ विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए ऑस्कर मिला और कई श्रेणियों में नामांकित भी किया गया. फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी होयते वैन होयतेमा ने की थी. नायक के अपने बच्चों के साथ खेतों के बीच ड्रोन का पीछा करने, अन्तरिक्ष-यात्रियों के दल के वर्महोल से गुज़रने, ब्लैक होल का चक्कर लगाने के दृश्यों का फिल्मांकन कमाल का है. वहीं, पृथ्वी से अरबों किलोमीटर दूर बैठे अंतरिक्ष यात्री के अपने परिवार के लोगों से बात करने के दृश्य दर्शक को भी भावुक कर देते हैं.
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