Oppenheimer Hindi Review
निर्देशक क्रिस्टोफ़र नोलन का कहानी कहने का अंदाज़ अलग होता है. उनकी फ़िल्मों में विज्ञान की एक सक्रिय भूमिका होती है और फैंटेसी का रास्ता भी इसी से होकर जाता है. अपनी पेचीदा शैली के बावजूद वे अपनी फ़िल्मों में मानवीय संवेदना के लिए जगह बनाए रखते हैं, चाहे वह बैटमैन जैसी सुपरहीरो फ़िल्म हो या फिर इंटरस्टेलर जैसी विज्ञान फैंटेसी जिसके केंद्र में अंततः पिता और बेटी का रिश्ता है.
पिछले साल आई फ़िल्म ‘ओपेनहाइमर’ (Oppenheimer) की चर्चा इसकी रिलीज़ से बहुत पहले से हो रही थी. परमाणु बम के जनक जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर पर बनी यह फ़िल्म नोलन की पहली बायोपिक फ़िल्म थी. इसलिए दर्शकों के मन में यह देखने के लिए भी उत्सुकता थी कि एक वैज्ञानिक के जीवन पर आधारित फ़िल्म को वे किस तरह बनाते हैं. फ़िल्म में उनकी चिर-परिचित शैली दिखाई देती है. हम कहानी को कई हिस्सों में देखते हैं. लेकिन इस सब के बावजूद कहानी हमें बाँधे रखती है.
इस फ़िल्म की कहानी पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता किताब ‘अमेरिकन प्रॉमीथियस’ पर आधारित है जो 2005 में प्रकाशित हुई थी. ग्रीक मिथकों के अनुसार प्रॉमीथियस ने ओलिम्पियन देवताओं से आग चुराकर इंसानों को सौंप दी थी. इस आग के रूप में इंसानों को ज्ञान और सभ्यता मिली. ग्रीक देवता ज़िउस को यह मंज़ूर नहीं था और उन्होंने सज़ा के तौर पर प्रॉमीथियस को पहाड़ पर एक चट्टान से बँधवा दिया जहाँ एक चील आकर उसे रोज़ नोचती थी. रात भर में उसके घाव भर जाते थे और अगली सुबह फिर यही सिलसिला शुरू हो जाता था.
ओपेनहाइमर ने विज्ञान से ऐसी ही आग लेकर मानवजाति को सौंपी थी. कहीं न कहीं वे जानते थे कि जो वे करने जा रहे हैं उसका क्या अंजाम होने वाला है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इसमें शामिल देशों के बीच हथियारों की होड़ लगी थी. परमाणु बम पर अनुसंधान ज़ोरों पर था. हर देश यह तकनीक हासिल करना चाहता था. ऐसे में हिटलर जैसे तानाशाह के हाथ कोई घातक तकनीक लग जाना पूरी मानवता के लिए खतरा था. आइन्स्टीन ने अमेरिकी सरकार को इससे आगाह किया और अमेरिका ने परमाणु बम बनाने की दिशा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. फ़िल्म में हम देखते हैं कि किस तरह अमेरिकी सरकार ने ओपेनहाइमर को इस प्रोजेक्ट का अग्रणी बनाया, यह जानते हुए भी कि उनका झुकाव वामपंथ की तरफ़ था. यह बात अलग है कि जब ओपेनहाइमर ने बाद में अमेरिका की इन विनाशकारी नीतियों का विरोध किया तो उन पर मुकदमा चलाया गया. फ़िल्म इसी मुकदमे की कार्रवाई से शुरू होती है और इससे पहले की कई घटनाएँ हमें फ़्लैश बैक में देखने को मिलती हैं.
ओपेनहाइमर की प्रतिभा विलक्षण थी. वे कोई भी भाषा कुछ ही समय में सीख लेते थे, कई बार इतनी अच्छी तरह कि उसी भाषा में व्याख्यान तक दे देते थे. उन्होंने संस्कृत का भी गहराई से अध्ययन किया, गीता भी पढ़ चुके थे. ट्रिनिटी टेस्ट जैसी बड़ी कामयाबी हासिल करने के बाद आखिरकार उन्हें उस महाविनाश की कल्पना होने लगी थी जिसका दरवाज़ा वे खोल चुके थे.
किलियन मर्फ़ी ने ओपेनहाइमर की मनोदशा के इस उतार-चढ़ाव को गहराई से पकड़ा है. उनकी आँखों में उस अनजाने भविष्य की डरावनी तस्वीर को देखा जा सकता है जिसे शायद उस समय ओपेनहाइमर देख रहे होंगे. नोलन की कई फ़िल्मों में किलियन पहले भी काम कर चुके हैं. कुछ समय पहले नेटफ़्लिक्स पर आई सीरीज़ ‘पीकी ब्लाइंडर्स’ में भी उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई थी.
फ़िल्म कलर और ब्लैक एंड व्हाइट, दो टाइमलाइन में फ़िल्माई गई है. कलर टाइमलाइन में दिखाई गई घटनाएँ ओपेनहाइमर के ‘सब्जेक्टिव’ नज़रिए से हैं जबकि ब्लैक एंड व्हाइट में हम लेविस स्ट्रॉस का नज़रिया देखते हैं. इस तरह कई घटनाएँ हम फ़िल्म में अलग-अलग समय पर दोनों टाइमलाइन में देखते हैं जैसे ओपेनहाइमर का आइन्स्टीन से मिलना.
फ़िल्म का सबसे यादगार दृश्य ओपेनहाइमर का दर्शकों से खचाखच भरे हॉल में जाकर भाषण देने का है. यह दृश्य झकझोर देता है. उत्साही समर्थकों के पैरों की आवाज़ का इस्तेमाल फ़िल्म इस दृश्य के पहले से करती है जो बाद में आए इस दृश्य को और प्रभावी बना देता है. ट्रिनिटी टेस्ट के दृश्य का फ़िल्मांकन भी भौतिकी को ध्यान में रखते हुए किया गया है जिसमें बम फटने के बाद पहले रोशनी और कुछ देर बाद धमाके की आवाज़ सुनाई देती है. करीब डेढ़ मिनट के इस शॉट में कोई आवाज़ नहीं है. यह हमें उस विनाशकारी ताकत को महसूस करने का मौका देता है जिसकी सीमाओं का हमें अंदाज़ा ही नहीं है.
एक और दृश्य है जिसमें ओपेनहाइमर के साथ पूछताछ की कार्रवाई की जा रही है और उसकी पत्नी उसके पीछे बैठी है. वह दूसरी महिला के साथ अपने संबंधों को स्वीकारता है और हम देखते हैं कि वह अचानक निर्वस्त्र हो चुका है. यह दरअसल नायक के मन की स्थिति है जो हम इस सब्जेक्टिव टाइमलाइन में देखते हैं. फ़िल्म के सिनेमैटोग्राफ़र होयते वैन होयतेमा हैं जो नोलन की पिछली कई फ़िल्मों में सिनेमैटोग्राफ़ी कर चुके हैं. फ़िल्म आईमैक्स कैमरों पर फ़िल्माई गई है. ब्लैक एंड व्हाइट दृश्यों के फ़िल्मांकन के लिए अलग से ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म का इस्तेमाल किया गया. स्पेशल इफ़ेक्ट्स का इस्तेमाल फ़िल्म में बहुत कम किया गया है. लेविस स्ट्रॉस की भूमिका में रॉबर्ट डाउनी जूनियर ने बेहतरीन काम किया है. ओपेनहाइमर की पत्नी की भूमिका में एमिली ब्लंट, उनकी प्रेमिका जीन टैटलॉक की भूमिका में फ़्लोरेंस पग और जनरल लेस्ली की भूमिका में मैट डैमन हैं. फ़िल्म का संगीत लुडविग गॉरैन्सन का है जो इससे पहले ‘टेनेट’ में भी संगीत दे चुके हैं.
यह फ़िल्म तकनीक और ताकत की उस अंधी दौड़ पर सवाल करती है जिसके पीछे आज भी पूरी दुनिया भाग रही है. फ़िल्म ओपेनहाइमर और आइन्स्टीन के बीच हुई उस बातचीत के दृश्य पर खत्म होती है जिसे फ़िल्म में पहले ब्लैक एंड व्हाइट टाइमलाइन में दिखाया गया था, लेकिन आखिर में यही दृश्य हम ओपेनहाइमर की तरफ़ से देखते हैं.
फ़िल्म की शुरुआत में नील्स बोर ओपेनहाइमर से कहते हैं कि हम भविष्य के खतरों की परवाह किए बगैर कदम आगे बढ़ा सकते हैं. लेकिन अंत में हम देखते हैं कि पत्थर के हटते ही उसके नीचे से एक खतरनाक साँप फुफकारते हुए बाहर निकल आया है.
रिलीज़ : 2023
कहाँ देखें : इस समय Jio Cinema पर हिंदी डब में उपलब्ध
मूल भाषा : अंग्रेज़ी
बजट : 10 करोड़ डॉलर
निर्देशक : क्रिस्टोफ़र नोलन
पुरस्कार : 7 श्रेणियों में ऑस्कर तथा कई अन्य पुरस्कार मिले